Holi Festival Observation History in Hindi
होली पर्व क्या है ?
होली भारत का एक प्रमुख त्योहार है, जिसे रंगों के पर्व के रूप में जाना जाता है। यह वसंत ऋतु के आगमन का संकेत देता है और इसे हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस त्योहार का उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में भी मिलता है, जो इसके ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक महत्व को प्रमाणित करता है।
होली का प्राचीन इतिहास
होली का वर्णन कई प्राचीन धार्मिक एवं साहित्यिक ग्रंथों में मिलता है। इसका उल्लेख विशेष रूप से विष्णु पुराण, भागवत पुराण और नारद पुराण में किया गया है। इसके अतिरिक्त, कात्यायन स्मृति एवं अन्य वैदिक साहित्य में भी होली के पर्व का संदर्भ मिलता है।
नृसिंह अवतार एवं प्रह्लाद कथा
होली के पीछे सबसे प्रसिद्ध पौराणिक कथा भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार से जुड़ी हुई है। इस कथा के अनुसार, हिरण्यकश्यप नामक असुरराज ने अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की भक्ति करने के कारण दंडित करने का प्रयास किया। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह अग्नि में नहीं जल सकती। उसने प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठने का प्रयास किया, किंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। यह घटना बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक बनी, और तभी से होलिका दहन की परंपरा चली आ रही है।कामदेव का बलिदान
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव ने अपनी गहरी तपस्या में ध्यानमग्न रहने के लिए प्रेम के देवता कामदेव को भस्म कर दिया था। यह घटना भी फाल्गुन माह में घटी थी, और इसी कारण इस दिन को होली के रूप में मनाया जाता है। कालांतर में, भगवान शिव की कृपा से कामदेव को पुनः जीवन मिला, जिसके उपलक्ष्य में होली का उत्सव उल्लासपूर्वक मनाया जाता है।राधा-कृष्ण की होली
भागवत पुराण एवं ब्रह्मवैवर्त पुराण में उल्लेख मिलता है कि भगवान श्रीकृष्ण एवं राधा की प्रेमलीलाओं में होली का विशेष महत्व था। वृंदावन और बरसाना की होली आज भी उसी परंपरा का अनुसरण करती है, जहाँ राधा और उनकी सखियाँ श्रीकृष्ण के साथ रंगों की होली खेलती थीं। यह परंपरा आज भी विशेष रूप से उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, और बरसाना में धूमधाम से मनाई जाती है।
संस्कृत ग्रंथों में होली के प्रमाण
होली का उल्लेख विभिन्न संस्कृत ग्रंथों में मिलता है, जो इसकी प्राचीनता को प्रमाणित करता है।
विष्णु पुराण में प्रह्लाद और होलिका दहन की कथा विस्तृत रूप में वर्णित है। इसमें कहा गया है: "प्रह्लादस्य भक्तिर्नित्यं विष्णौ परं गतः। होलिका दग्धा तस्मात्, होलीत्युदाहृता॥" (अर्थात: प्रह्लाद की भक्ति सदा भगवान विष्णु में स्थित थी, जिससे होलिका जल गई और इस कारण इसे होली कहा जाता है।)
कवि कालिदास की रचनाओं में भी वसंतोत्सव और होली के उल्लास का वर्णन मिलता है। उनके ग्रंथ ऋतुसंहार में वसंत ऋतु और फाल्गुन मास में रंगोत्सव का उल्लेख किया गया है।
राजशेखर के काव्यमीमांसा ग्रंथ में भी होली के रंगोत्सव का उल्लेख मिलता है।
होली का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
होली केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता का प्रतीक भी है। इस दिन सभी लोग रंगों से सराबोर होकर भेदभाव को भुला देते हैं। यह पर्व समाज में प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देता है। प्राचीन काल से ही इसे उत्सव रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
होली भारत की संस्कृति और परंपरा का एक अभिन्न अंग है। इसके ऐतिहासिक प्रमाण प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में मिलते हैं, जो इसकी प्राचीनता और महत्व को दर्शाते हैं। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। होली का पर्व हमें प्रेम, सद्भाव, और एकता का संदेश देता है, जिसे हमें सदैव अपने जीवन में अपनाना चाहिए।
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