Sriram Navami: The Divine Birth of Lord Rama

Sriram Navami: The Divine Birth of Lord Rama

 

Sriram Navami The Divine Birth of Lord Rama

श्रीराम नवमी: मर्यादा पुरुषोत्तम राम का दिव्य जन्म दिवस

श्रीराम नवमी हिन्दू धर्म का एक अत्यंत पवित्र और शुभ पर्व है, जो भगवान विष्णु के सातवें अवतार भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाता है और चैत्र नवरात्रि का अंतिम दिन होता है। इस दिन धर्म, सत्य, मर्यादा और आदर्शों का धरती पर अवतरण हुआ था।

श्रीराम नवमी का महत्व

भगवान श्रीराम केवल एक ईश्वर नहीं, बल्कि धर्म, मर्यादा और करुणा के साक्षात स्वरूप हैं। उनका जीवन प्रत्येक मनुष्य के लिए एक आदर्श है—एक उत्तम पुत्र, आदर्श पति, न्यायप्रिय राजा और मर्यादा में रहने वाले पुरुषोत्तम।

श्रीराम नवमी पर भक्त व्रत, पूजा, रामचरितमानस व रामायण का पाठ करते हैं, मंदिरों में विशेष आयोजन होते हैं और अयोध्या सहित देशभर में शोभायात्राएं निकाली जाती हैं।

श्रीराम का जन्म – वाल्मीकि रामायण से कथा

भगवान श्रीराम के जन्म की सबसे प्राचीन और प्रामाणिक कथा वाल्मीकि रामायण के बालकाण्ड में वर्णित है।

अयोध्या के राजा दशरथ के कोई संतान नहीं थी, जिससे वे अत्यंत चिंतित थे। संतान प्राप्ति हेतु उन्होंने अपने गुरु वशिष्ठ की सलाह पर ऋष्यशृंग मुनि द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ का आयोजन किया। यज्ञ पूर्ण होने पर अग्निदेव प्रकट हुए और उन्होंने राजा दशरथ को एक स्वर्ण पात्र में दिव्य खीर (पायसम) प्रदान की।

राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनों रानियों में इस प्रकार बाँटी:

कौशल्या को आधा भाग मिला, जिससे राम का जन्म हुआ।

कैकेयी को चौथाई भाग मिला, जिससे भरत उत्पन्न हुए।

सुमित्रा को शेष खीर मिली, जिससे लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

इस प्रकार चैत्र शुक्ल नवमी, पुनर्वसु नक्षत्र और कर्क लग्न में भगवान राम का जन्म हुआ। उस दिन अयोध्या में अपूर्व प्रकाश और आनंद की वर्षा हुई।


श्रीराम नवमी से जुड़ी पुराण कथाएं :

 जया-विजया की कथा (भागवत पुराण):

भागवत पुराण (स्कंध 3, अध्याय 15-16)

भगवान विष्णु के पार्षद जया और विजया को सनकादिक ऋषियों द्वारा शाप मिला कि वे तीन बार पृथ्वी पर जन्म लेंगे और भगवान के हाथों ही मोक्ष पाएँगे।

  • पहले जन्म में: हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु (विष्णु ने वराह और नरसिंह रूप में वध किया)
  • दूसरे जन्म में: रावण और कुम्भकर्ण (श्रीराम ने वध किया)
  • तीसरे जन्म में: शिशुपाल और दन्तवक्र (श्रीकृष्ण द्वारा वध)

 भविष्यवाणी (पद्म पुराण):

ऋषि भृगु व अन्य तपस्वियों ने भविष्यवाणी की थी कि त्रेता युग में विष्णु स्वयं राम रूप में अवतरित होंगे।


राम — मर्यादा पुरुषोत्तम

भगवान राम का सम्पूर्ण जीवन आदर्शों से परिपूर्ण है। जब पिताजी की आज्ञा के पालन हेतु उन्होंने वनवास को गले लगाया, तब उन्होंने दुनिया को दिखा दिया कि धर्म का पालन केवल शब्दों से नहीं, कर्म से होता है।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार:

"रामो विग्रहवान् धर्मः"

(राम धर्म का साक्षात स्वरूप हैं)

चाहे वह राक्षसी ताड़का का वध हो, शिव धनुष को तोड़कर सीता से विवाह करना हो, या रावण जैसे अधर्मी का वध कर संसार को अन्याय से मुक्ति दिलाना—श्रीराम का जीवन एक जीवंत शिक्षा है।


श्रीराम नवमी की परंपराएं :

इस दिन देशभर में विभिन्न धार्मिक आयोजन होते हैं:

  • रामायण पाठ: विशेष रूप से बालकांड का पाठ किया जाता है।
  • कीर्तन और भजन: मंदिरों और घरों में ‘राम-नाम’ कीर्तन होते हैं।
  • व्रत और पूजा: भक्तजन दिनभर उपवास रखते हैं और तुलसी पत्र, पुष्प व फल से पूजन करते हैं।
  • राम जन्म: दोपहर 12 बजे, राम के जन्म समय पर, झूले में बाल रूप श्रीराम की मूर्ति को झुलाया जाता है।

अयोध्या और अन्य तीर्थों में राम रथ यात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु भाग लेते हैं।

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श्रीराम नवमी: एक युगों तक प्रासंगिक पर्व

आज के समय में जब नैतिकता और मूल्य कमजोर पड़ते जा रहे हैं, राम नवमी हमें याद दिलाती है कि सत्य, धैर्य और धर्म कभी पुराने नहीं होते। श्रीराम का जीवन हमें यह सिखाता है कि संघर्षों में भी मर्यादा और आदर्शों का त्याग नहीं करना चाहिए।

उनके श्रीमुख से निकली बातों और उनके कर्मों में आज भी मनुष्यता की राह है।


समापन विचार

श्रीराम नवमी केवल एक जन्मोत्सव नहीं, बल्कि धर्म, आदर्श और कर्तव्य की पुनः स्मृति है। यह पर्व हमें सिखाता है कि कैसे कठिन परिस्थितियों में भी संयम, सत्य और धर्म के पथ पर चला जाए।

आइए, इस श्रीराम नवमी पर हम भी उनके आदर्शों को अपने जीवन में उतारने का संकल्प लें।

"जय श्रीराम!"

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